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कलयुग का परिचय
 

कलयुग भारतीय धर्म और दर्शन के अनुसार चार युगों में से एक है। यह हिन्दू धर्म में समय की एक विशेष अवधि को दर्शाता है और इसका अवधारणात्मक अर्थ है कि यह युग मानवता के दुखों, असमानताओं और अधर्म की अवधारणाओं से भरा होता है। कलयुग वेदों के अनुसार सतयुग, त्रेतायुग और द्वापरयुग के बाद आता है।

कलयुग की आरंभिक तारीख से संबंधित विभिन्न मान्यताओं में कुछ अंतर हो सकते हैं, लेकिन यह युग कुछ अनुमानित समय के लिए होता है, जैसे कि वैदिक संस्कृति में यह लगभग 4,32,000 वर्षों का अवधि का होता है।

कलयुग के आधार पर, धर्म, सत्य, न्याय और सम्मान का अधिकतम लोप होता है। लोग धर्म, ईमानदारी, साधारण शिक्षा और समय-समय पर व्यवस्था के लिए जाने जाते हैं। कलयुग में मनुष्यों की अधिकांशत: भ्रष्टाचार, लोभ, शोषण, असमानता, अनैतिकता और अधर्म में रूचि रखते हैं।

इस युग में मानव अपने आपको स्वार्थी, अनादर्य और आत्ममान्य बना लेता है, जिससे समाज में अव्यवस्था, विवाद, अन्याय और संकट बढ़ता है। यह युग भी धर्मान्तरण के अधिक प्रवृत्ति, धर्म-संघर्ष और आत्म-सुख साधने की प्रवृत्ति के रूप में प्रस्तुत होता है।

कलयुग का अंत होने पर एक नया सत्युग आरंभ होता है, जिसे फिर से विकास, सत्य, न्याय और धर्म की सच्चाई से भरपूर किया जाता है।

यह युग धार्मिक और दार्शनिक दृष्टिकोण से एक मानवीय अनुभव की अवधारणा है, जिसमें मानव समाज के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण किया जाता है। इसमें मानवता की मानवीयता, उनकी आत्म-संवाद, अन्याय और समाज में न्याय की अवधारणा पर जोर दिया जाता है।

कलियुग एक प्राचीन भारतीय धार्मिक और दार्शनिक विचारधारा है जो हिन्दू धर्म में समय के चार युगों में से एक है। कलियुग का अर्थ होता है 'काल का युग'। वेदों के अनुसार, चार युग होते हैं: सत्युग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग। हर युग की अवधि में धर्म, नैतिकता, और मानवता के नैतिक मापदंडों में गिरावट होती है।

कलियुग का आरंभ सम्पूर्ण चतुर्युगों के समाप्त होने के साथ होता है, जिसमें सभी धार्मिक और मानवीय गुणों की अवनति और अधर्म का वृद्धि का समय होता है। यहां मान्यता है कि कलियुग अधर्म, असहिष्णुता, भ्रष्टाचार, अंधविश्वास और मानवीय दुर्भावनाओं का युग है।

कलियुग के आरंभ में, धर्म की कमी, असत्यता, और मानवता में अहंकार की वृद्धि होती है। लोगों में ईमानदारी कम होती है, और धर्म वालों को अत्याचार का सामना करना पड़ता है। इस युग में धर्म, नैतिकता और सत्य की कमी होती है, जिससे समाज में विभाजन और असमानता बढ़ती है।

हिन्दू धर्म में कहा गया है कि कलियुग के अंत के बाद, नया सत्युग आएगा जो पुनः धर्म, सत्य, और नैतिकता की पुनर्स्थापना लाएगा। यह युग पुनर्जीविति और नए आरंभों का समय होगा।

कलियुग की सोच और संदेश है कि चाहे जैसे भी वातावरण हो, मानव को धर्म, सत्य, और नैतिकता को बनाए रखने के लिए सतत प्रयासरत रहना चाहिए। यह युग मानवता के अध्यात्मिक और सामाजिक विकास के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश भी देता है।

कलयुग के विष्णु अवतार

कल्कि अवतार

कल्कि अवतार भगवान विष्णु के दसवें अवतार माने जाते हैं जो हिन्दू धर्म में प्रत्येक युग में प्रकट होते हैं। कल्कि अवतार को भविष्य में होने वाले संकटों को दूर करने और धर्म की स्थापना के लिए प्रस्थित माना जाता है। वेदों के अनुसार, कल्कि अवतार अंतिम अवतार होता है जो कलियुग के अंत में प्रकट होता है।

कल्कि अवतार के आगमन को भगवान विष्णु की रहस्यमय शक्तियों और उनके अवतारों के जन्म के संकेत के रूप में देखा जाता है। उनका उद्गम स्थान शम्बल गांव के नजदीक बताया गया है। वे अधर्म का नाश करते हैं और न्याय की स्थापना के लिए अवतरित होते हैं।

कल्कि अवतार की कथा में कहा जाता है कि उन्हें कलियुग के अंत में पृथ्वी पर आकर धर्म की रक्षा करने के लिए भगवान विष्णु के अवतार के रूप में प्रकट होना होता है। वे एक सजीव व्यक्ति के रूप में आते हैं और अधर्म को समाप्त करने के लिए युद्ध करते हैं।

कल्कि अवतार का वर्णन भविष्य पुराण में भी किया गया है। उन्हें एक सजीव व्यक्ति के रूप में आने वाले और एक घोड़े पर बैठे हुए वीर योद्धा के रूप में चित्रित किया गया है।

कल्कि अवतार के आगमन को भविष्य में होने वाले संकटों को दूर करने और धर्म की स्थापना के लिए जिम्मेदार माना जाता है। उनका प्रमुख उद्देश्य धर्म की स्थापना और अधर्म के नाश करना होता है।

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