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द्वापरयुग का परिचय

द्वापर युग हिंदू धर्म के चार युगों में से तीसरा युग है। यह युग त्रेता युग के बाद आता है और इसकी अवधि का विवरण भगवद गीता, पुराणों, और वेदों में मिलता है। द्वापर युग की अवधि लगभग 8,64,000 वर्ष होती है।

द्वापर युग में मानवता का स्तर धीरे-धीरे कम होता जाता है और अधर्म का प्राबल्य होता है। इस युग में भगवान विष्णु का दावा होता है कि वे मानवता के लिए अवतार लेंगे और असुरों का संहार करेंगे। द्वापर युग में धर्म के अनेक रूप और प्रथाएं उद्भवित होती हैं, लेकिन इस युग में अधर्म भी अधिक होता है।

द्वापर युग की समाप्ति पर कलियुग आरंभ होता है, जिसे मानवता का सबसे अधोगति युग माना जाता है। यह हिंदू धर्म के धार्मिक तालिका में उल्लिखित युगों में से एक है और यह मानवता के चक्र का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है जिसमें विभिन्न धर्मिक और सांस्कृतिक घटनाएं घटीं और विकसित हुईं।

द्वापर युग, भारतीय धर्म के अनुसार, चार युगों में से तीसरा युग होता है। इसकी अवधि लगभग 8,64,000 वर्ष होती है और इसे कलियुग के बाद आता है। यह युग महाभारत काल के दौरान हुआ था। द्वापर युग में मानवता की अवस्था धार्मिक दृष्टि से सात्विकता और राजसिकता की दिशा में होती है।

इस युग में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था जिन्होंने 'भगवद गीता' का उपदेश दिया था। महाभारत युद्ध भी इस युग में हुआ था, जिसमें पांडवों और कौरवों के बीच भयंकर युद्ध हुआ था। इस युग में मानव जीवन में अनेक धार्मिक और सामाजिक परिवर्तन हुए थे।

वेदों की भूमिका धीरे-धीरे कम होने लगी और मानव जीवन में अधर्म, असमाजिकता और शोषण की प्रवृत्ति बढ़ गई। यह युग धर्म के अधीन था, लेकिन धर्म की पालना में कमी आने लगी थी।

द्वापर युग में लोगों की आयु भी कम हो गई थी और उनके शारीरिक और मानसिक शक्ति में भी कमी आई थी। यह युग मानव जीवन की विभिन्न अवधारणाओं, धार्मिक और सामाजिक प्रवृत्तियों की विस्तृत छवि प्रदान करता है।

धर्म, अधर्म, न्याय, अन्याय और सत्य की प्रमाणिकता इस युग के महत्वपूर्ण विषय थे। धर्म की हानि और अधर्म की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण, द्वापर युग में मानव समाज ने अपनी अनैतिकता और असमाजिकता को बढ़ावा दिया था।

द्वापर युग का समापन हुआ और कलियुग आरंभ हुआ, जिसे भगवान कलियुग कहलाते हैं। इस प्रकार, द्वापर युग भारतीय संस्कृति और धर्म के इतिहास में एक महत्वपूर्ण और मार्गदर्शक युग के रूप में जाना जाता है।

द्वापरयुग के विष्णु अवतार

बलराम अवतार

भगवान विष्णु के दस अवतारों में से एक अवतार बलराम (Balram) है। बलराम को अवतार माना जाता है जो श्रीकृष्ण के बड़े भाई और सहायक थे। वे तो भगवान विष्णु के अंश थे और उनकी भक्ति में निष्ठा थी।

बलराम का जन्म योगमाया की गर्भ से हुआ था। उनके पिता का नाम वसुदेव था और माता का नाम देवकी था। उनका जन्म बृज में हुआ था, जहां वे नंद बाबा और यशोदा माँ के घर पर बड़े भाई के रूप में पालना किये गए।

बलराम को शंकर्षण, हलायुध, दौजी, राम, रामानुज, सेश, रामदास, संकर्षण, राधारमण, यमुना तात, बलभद्र, हल, हलायुध, सदाशिव, द्विजप्रिय और द्विजपाल के नामों से भी जाना जाता है।

बलराम का विशेष महत्त्व है क्योंकि वे भगवान श्रीकृष्ण के साथ नहीं सिर्फ भाई के रूप में थे, बल्कि उनके साथी और साथक भी थे। उन्होंने श्रीकृष्ण को उनके सभी कार्यों में सहायता की और उनके साथ मिलकर महाभारत के युद्ध में भी भाग लिया।

बलराम की प्रमुख वाहना है हल (plough) और शंख (conch)। उन्हें सांड के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है और वे कृषिकामना के प्रतीक माने जाते हैं।

बलराम का अवतार लोगों को सही और गलत के बीच अंतर को समझाने का संदेश देता है, उन्होंने धर्म की रक्षा की और धर्म के लिए संघर्ष किया। उनके अवतार का उद्देश्य धर्म की रक्षा करना था और उन्होंने अपनी भाई श्रीकृष्ण के साथ मिलकर अनेक कठिनाइयों का सामना किया।

कृष्ण अवतार

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भगवान विष्णु के दस अवतारों में से एक है 'कृष्ण अवतार'। भगवान कृष्ण हिन्दू धर्म में प्रिय और पूज्य देवता माने जाते हैं। उनका अवतरण द्वापर युग में हुआ था। कृष्ण अवतार विष्णु भगवान का आठवां अवतार माना जाता है और उन्होंने भगवद गीता के माध्यम से मानवता को ज्ञान और मार्गदर्शन प्रदान किया।

कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था, जो कि यदु वंशीय राजा वसुदेव और देवकी के घर हुआ था। उनका जन्म रात्रि के व्यापीत होते ही उनके पिता वसुदेव ने उन्हें कृष्ण के सहयोगी बलराम के साथ गोकुल में नंद और यशोदा के पास ले जाकर रख दिया।

कृष्ण का बचपन गोकुल में बहुत ही प्रेम भरा था। उन्होंने गोपियों और गोपों के साथ खेलते, माखन चोरी करते और नाचते थे। उनकी लीलाएं और कहानियाँ बच्चों और वयस्कों को भी अपनी ओर आकर्षित करती हैं।

कृष्ण ने महाभारत काल में भगवद गीता के रूप में मानवता को अनमोल ज्ञान प्रदान किया। भगवद गीता में उन्होंने अर्जुन को धर्म और कर्तव्य का ज्ञान दिया और उन्हें अपने कर्तव्य के प्रति समर्पित होने का संदेश दिया।

कृष्ण के जीवन में अनेक घटनाएं हुईं जो उनके दिव्य रहस्यों से भरी हैं। उनकी विचित्र लीलाएं, माखन चोरी, गोपियों के साथ रास लीला, कांस जीसे युद्ध और उनका बचपन से योद्धा रूप इन्हें अद्वितीय बनाते हैं।

कृष्ण अवतार ने धर्म, कर्म, और उच्च जीवन शैली का प्रचार-प्रसार किया। उनका संदेश सर्वोत्तम धर्म को पालन करने की प्रेरणा देता है और मनुष्य को सत्य, न्याय, और प्रेम में जीने की सीख देता है। उनकी भक्ति और प्रेम ने हर व्यक्ति को आत्मानुभव की दिशा में प्रेरित किया।

कृष्ण का अवतार एक ऐसा मार्गदर्शक था जो हर व्यक्ति को सही राह दिखा सकता है और जीवन को सफल और समृद्ध बनाने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। उनकी कथाएं और उनके संदेश आज भी मानवता के लिए मार्गदर्शन का कार्य करते हैं।

बुद्ध अवतार

भगवान विष्णु के दस अवतारों में से एक, बुद्ध अवतार, हिन्दू धर्म में एक अद्वितीय और महत्वपूर्ण अवतार माना जाता है। यह अवतार भगवान विष्णु का नौवां और अंतिम अवतार माना जाता है, जो संसार को दुख से मुक्ति की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं। बुद्ध अवतार की कथा हमें धर्म, त्याग, और समर्पण की महत्वपूर्ण सिखें देती हैं।

बुद्ध अवतार का संबंध गौतम बुद्ध से है, जो नेपाल देश के लुम्बिनी नामक स्थान पर जन्मे थे। वे एक राजकुमार थे, लेकिन उन्होंने संसार के दुखों को देखकर जीवन के वास्तविक अर्थ को ढूँढ़ने का निर्णय किया। अपने अंगुलिमाल जीवन में कई तपस्याएं और ध्यान की थीं, और अंत में, महाभिनिष्क्रमण के समय, उन्होंने सम्पूर्ण बोध को प्राप्त किया और बुद्ध बन गए।

बुद्ध ने अपने शिष्यों को चार नोबल सत्यों का उपदेश दिया, जिन्हें चारित्रिक धर्म कहा जाता है। इनमें दुख का कारण, दुख का नाश, दुख का कारण का नाश, और दुख का नाश करने का मार्ग हैं। उन्होंने अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, और अपरिग्रह जैसे महाव्रतों का पालन किया और अनेक उपदेशों के माध्यम से लोगों को धर्मिकता और नैतिकता की ओर प्रवृत्ति करने के लिए प्रेरित किया।

बुद्ध अवतार की कथा हमें यह सिखाती है कि जीवन में सत्य, अहिंसा, और सहानुभूति के माध्यम से ही सच्ची मुक्ति प्राप्त हो सकती है। इस अवतार के माध्यम से, भगवान विष्णु ने संसार को धर्मपरायणता और उदारता की दिशा में प्रेरित किया, जिससे लोग सहजता और शांति की प्राप्ति का मार्ग सीख सकते हैं।

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