युग का परिचय
युग (Yuga) एक सांस्कृतिक और धार्मिक अनुष्ठान का संदर्भ है जो भारतीय धार्मिक धारणाओं में प्रचलित है। यह शब्द संस्कृत भाषा से आया है और 'युग' का अर्थ होता है 'युग' या 'युग-काल'। युग का अर्थ विशेष समय-संदर्भ में एक सांकृतिक या धार्मिक यात्रा को सूचित करता है।
भारतीय धार्मिक साहित्य में, युगों की गणना चार प्रमुख युगों से होती है - सत्युग (Satyug), त्रेतायुग (Tretayug), द्वापरयुग (Dwaparayug) और कलियुग (Kaliyug)। ये चार युग एक पूर्ण महायुग (Mahayuga) का हिस्सा होते हैं, जिसमें सत्युग की अवधि 1.728 मीलियन वर्ष होती है और उसके बाद हर युग की अवधि धीरे-धीरे कम होती है।
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सत्युग (Satyug): इस युग में धरती पर धर्म का पूरा पालन होता है और मानवता पूर्णता की ओर बढ़ती है। यह युग 1.728 मीलियन वर्ष तक चलता है।
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त्रेतायुग (Tretayug): इस युग में धर्म का 75% पालन होता है और मानवता में धार्मिकता में थोड़ी कमी आती है। इसकी अवधि 1.296 मीलियन वर्ष है।
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द्वापरयुग (Dwaparayug): इस युग में धर्म का 50% पालन होता है और मानवता में अधर्म बढ़ने लगता है। इसकी अवधि 864,000 वर्ष है।
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कलियुग (Kaliyug): यह युग हमारे समय का है, जिसमें धर्म का केवल 25% ही पालन होता है और मानवता में अधर्म की बहुत अधिकता होती है। इसकी अवधि 432,000 वर्ष है।
कलियुग का अंत आएगा और फिर से सत्युग का आरंभ होगा, जिससे युग चक्र का पुनरावृत्ति होती रहती है। युग का अनुष्ठान भारतीय सांस्कृतिक तथा धार्मिक विचारधारा में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है और इसे विभिन्न धार्मिक ग्रंथों, जैसे कि पुराण, महाभारत, रामायण, उपनिषद, आदि में सुना जा सकता है।